जलवायु परिवर्तन और मौसम परिवर्तन 2025 में भारत में गर्मी का रिकॉर्ड
भारत में गर्मी के रिकॉर्ड
- अत्यधिक गर्मी की शुरुआत: जैसा कि हम सभी जानते हैं, इस वर्ष गर्मी की शुरुआत सामान्य से पहले हो गयी थी । फरवरी के अंत में ही पश्चिमी तट पर महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में असामान्य रूप से उच्च तापमान दर्ज किया गया था । इस लिए इस वर्ष में प्रारंभ से ही अनुमान लगाया जा रहा था कि इस वर्ष गर्मी अधिक रहने वाली है .
- मार्च में रिकॉर्ड तापमान: इस वर्ष मार्च में ओडिशा के बौध जिले में 43.6°C तापमान दर्ज किया गया, गत एक दशक में मार्च के महीने में ही अत्यधिक गर्मी होना बड़ी बात थी .
- अप्रैल में उच्चतम तापमान: इस वर्ष अप्रैल माह में भी राजस्थान के बाड़मेर में 46.4°C तापमान रिकॉर्ड किया जाना अत्यंत चिंताजनक माना गया, यह क्षेत्रीय औसत से 6°C अधिक रहा ।
जलवायु परिवर्तन और गर्मी के बढ़ते प्रभाव
- गर्म रातें: अब देश के 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में रात का तापमान सामान्य से 3°C से 5°C अधिक रहने लगा है, यह भीषण गर्मी के संकेत कहा जा सकता है, एवं इसके जन-स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है ।
- गर्मी की लहरें: इस वर्ष भारत में 2025 में गर्मी की लहरें पहले से अधिक तीव्र और लंबे समय तक चलेंगी । इस वर्ष भारतीय मौसम विभाग (IMD) द्वारा चेतावनी दी गई है कि अप्रैल से जून के बीच गर्मी की लहरों की संख्या में वृद्धि होगी ।
- शहरी क्षेत्रों में संकट: गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे राज्यों में 10 से 11 दिन तक गर्मी की लहरें चलने की संभावना है, जिससे शहरी क्षेत्रों में जलवायु संकट और बढ़ सकता है।
जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूकता
हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण में यह सामने आया है कि भारतीय नागरिक जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को महसूस कर रहे हैं, जिसमें अधिक गर्मी की लहरें, बाढ़, जल संकट और मानसून के अनियमित पैटर्न शामिल हैं। यह सर्वेक्षण दिसंबर 2024 से फरवरी 2025 के बीच किया गया था, जिसमें 10,751 व्यक्तियों ने भाग लिया .
अधिक गर्मी की लहरें बढ़ने से शहर एवं ग्रामीण अंचलों में जन सामान्य पर बहुत बुरे प्रभाव पड़ते हैं, बिजली की खपत अधिक होना, AC का प्रयोग बढ़ना आदि के कारण पर्यावरण पर भी बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है, साथ ही स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ भी बढती हैं, जलवायु परिवर्तन होने के कारण बाढ़ खतरा भी बना रहता है, बाढ के समय एवं उपरांत जन सामान्य के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, अत्यधिक गर्मी होने के कारण जल संकट जैसी चुनौती भी सामने खड़ी होती है, एवं मानसून के अनियमित होने का खतरा भी बढ़ जाता है ऐसे में कृषि कार्यों में परेशानी होने के साथ-साथ वार्षिक योजना बनाने में भी सरकारों को दिक्कत होती है .
निवारण और तैयारी
- हीट एक्शन प्लान: भीषण गर्मी से निजात पाने के लिए गुजरात ने 2013 में हीट एक्शन प्लान (HAP) की सफलतम शुरू आत की गयी, जिसके परिणामस्वरूप लगभग 1,000 मौतों की रोकथाम हुई। ऐसे उपायों को अन्य राज्यों में भी लागू करने की आवश्यकता है, हम जब समग्र रूप से विचार करेंगे तो हम समस्या का वैकल्पिक समाधान करने में सफल होंगे.
- स्वास्थ्य सेवाओं एवं बिजली की मांग: यह बात सत्य है, कि गर्मी की लहरों के कारण स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव बढ़ सकता है और बिजली की मांग में 9-10% की वृद्धि हो सकती है। हमें यह मात्र गर्मी तक की समस्या न मानते हुए, जलवायु परिवर्तन की समस्या को ध्यान में रखते हुए, कार्य योजना बनानी चाहिए, क्योंकि भिन्न भिन्न राज्यों में चुनौतियाँ अलग-अलग हैं, उसी अनुसार हमें निवारण का विचार करना होगा .
जलवायु परिवर्तन में विकास का अन्धानुकरण भी बड़ा कारण है
विकास के नाम पर संसार में बड़े पैमाने पर वन क्षेत्रों को काटा जा रहा है, कृषि योग्य भूमि को अन्य प्रयोगों में लेकर, उर्वरा भूमि पर कंक्रीट के जंगल बनाये जा रहे हैं, परिणाम भूजल में कमी, भोजन सामग्री का आभाव, सुखा जैसे हालात पैदा हो रहे हैं . पर्वतों पर लगातार निर्माण कार्यों का होना, नदियों का सूखना, पेयजल आभाव, अनेकों प्रकार से मानव जीवन खतरे में दिख रहा है, किन्तु सरकारें इस और गंभीर दिखाई नहीं देतीं और न ही जनता को कोई परवाह, आखिर हम किस ओर जा रहे हैं, ये विचार करना होगा . यह समझना होगा कि प्राकृतिक संसाधन तो सीमित हैं, उनको उपभोग करना यहाँ तक चलता है लेकिन उसका दोहन करना, प्रकृति शोषण करना सम्पूर्ण मानवता के लिए खतरा बन रहा है . देर होने से पहले इसकी गंभीरता समाज और सरकारों को समझनी होगी .
लगातार घटता भूजल
आज देश के अनेकों शहरों एवं क्षेत्रों में भूजल लगभग समाप्त है, जन जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए जल प्रबंधन कर चलाया जा रहा है, किन्तु अगर इसी अनुपात में यदि भूजल घटता रहा तो यह प्राणीमात्र के समक्ष बड़ा खतरा बनकर सामने आएगा . शुद्ध पेयजल के आभाव में अनेकों क्षेत्र जूझ रहे हैं . अभी इसे जल संकट कह रहे हैं, भविष्य में यह जल त्रासदी बनकर सामने आने वाली है . दक्षिण भारत में तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना भी जल संकट से जूझ रहे हैं. पूर्वी भारत में झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा भी जल संकट से प्रभावित हैं. इन राज्यों के बड़े भूभाग में या तो भूजल समाप्त है अथवा लगातर घटता जा रहा है . यह मानव जीवन के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती बनकर सामने आने वाली है .
जीवन शैली में बाद रहे बदलाव
जब से मानव में अत्याधुनिक जीवन शैली को अपनाया है, तभी से दोहन का अध्याय प्रारंभ हुआ है, क्योंकि उससे पहले भारतीय जीवन शैली में प्रकृति की पूजा का विधान था, जितना लेना उससे डबल वापस करने का प्रावधान था, जल संरक्षण, वृक्षों का पालन पोषण, प्रकृति आधारित जीवन जीना यह सब पहले हुआ करता था, किन्तु मनुष्य में आधुनिकता के नाम पर, अपनी सुविधा के लिए हर संसाधन अपने लिए तैयार किया किन्तु प्रकृति की सोचे बिना . अब जब हम प्रकृति को कुछ देंगे ही नहीं तो प्रकृति हमें कहाँ तक ढोएगी .