भारत एक ऐसा देश है जहाँ हर पर्व अपने साथ किसी न किसी गहरी सीख और सामाजिक संदेश को लेकर आता है। इन्हीं पर्वों में से एक है विजयदशमी, जिसे आमतौर पर दशहरा भी कहा जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत प्रासंगिक है। विजयदशमी का पर्व हमें यह संदेश देता है कि चाहे बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः जीत सत्य, धर्म और सदाचार की ही होती है।
विजयदशमी का ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व
विजयदशमी का संबंध मुख्य रूप से दो महाकाव्यों – रामायण और महाभारत – से जोड़ा जाता है।
रामायण के अनुसार:
त्रेता युग में जब राक्षसों के राजा रावण ने माता सीता का हरण किया था, तब भगवान श्रीराम ने 9 दिनों तक देवी दुर्गा की साधना की। दसवें दिन उन्होंने रावण का वध करके सीता जी को मुक्त कराया। इस घटना को असत्य पर सत्य की जीत और अन्याय पर न्याय की विजय के रूप में देखा जाता है।
महाभारत के अनुसार:
पांडवों को 13 वर्षों का वनवास और अज्ञातवास भुगतना पड़ा। जब उनका अज्ञातवास समाप्त हुआ, तब उन्होंने अपने शस्त्रों को शमी वृक्ष से निकालकर पूजा की और विजय की कामना की। उसी दिन को विजयदशमी कहा गया।
देवी दुर्गा और दशहरा का संबंध
विजयदशमी का एक अन्य प्रमुख पहलू है देवी दुर्गा की विजय। नवरात्र के नौ दिनों तक माँ दुर्गा की पूजा होती है। कहा जाता है कि इन नौ दिनों तक देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक असुर से युद्ध किया और दसवें दिन उसकी हत्या की। इसलिए विजयदशमी को “माँ दुर्गा की विजय का दिन” भी माना जाता है।
सांस्कृतिक परंपराएँ और उत्सव
भारत के अलग-अलग राज्यों में विजयदशमी को भिन्न-भिन्न रूपों में मनाया जाता है।
उत्तर भारत में – रामलीला का आयोजन होता है, जिसमें भगवान राम के जीवन से जुड़ी घटनाओं का मंचन किया जाता है। दशहरे के दिन रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले जलाए जाते हैं।
पश्चिम बंगाल में – इसे दुर्गा पूजा के समापन के रूप में मनाया जाता है। देवी दुर्गा की भव्य प्रतिमाओं का विसर्जन होता है और लोग ‘विजयादशमी’ पर एक-दूसरे को शुभकामनाएँ देते हैं।
दक्षिण भारत में – इस दिन देवी सरस्वती और आयुध (हथियार/औजार) की पूजा होती है। कर्नाटक में मैसूर दशहरा प्रसिद्ध है, जहाँ भव्य जुलूस निकाला जाता है।
महाराष्ट्र और गुजरात में – लोग शमी वृक्ष की पत्तियों का आदान-प्रदान करते हैं और इसे ‘सोने के पत्ते’ कहकर आपसी रिश्तों को मजबूत करते हैं।
विजयदशमी का सामाजिक संदेश
सत्य की जीत:
यह पर्व हमें याद दिलाता है कि बुराई चाहे कितनी भी प्रबल क्यों न हो, अंततः उसका अंत निश्चित है।
आत्मसंयम और धैर्य:
भगवान राम ने 14 वर्षों का वनवास धैर्य और संयम के साथ पूरा किया और अंततः विजय प्राप्त की।
महिला शक्ति का सम्मान:
देवी दुर्गा की विजय हमें यह शिक्षा देती है कि स्त्रियों में अपार शक्ति होती है और समाज में उनका सम्मान करना आवश्यक है।
एकता और भाईचारा:
दशहरे के मेले और उत्सव लोगों को एकजुट करते हैं और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देते हैं।
आधुनिक समय में विजयदशमी का महत्व
आज के दौर में जब समाज कई तरह की चुनौतियों से जूझ रहा है – जैसे भ्रष्टाचार, हिंसा, असमानता, और पर्यावरण संकट – विजयदशमी का संदेश और भी प्रासंगिक हो जाता है।
हमें अपने भीतर छिपे “रावण” यानी नकारात्मकता, क्रोध, लालच और ईर्ष्या को खत्म करने की जरूरत है।
विजयदशमी हमें प्रेरित करता है कि हम व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में सदाचार, ईमानदारी और सत्य का पालन करें।
यह पर्व बच्चों और युवाओं को हमारी परंपराओं और सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ने का भी माध्यम है।
पर्यावरण और दशहरा
पिछले कुछ वर्षों से विजयदशमी पर पर्यावरण की चिंता भी सामने आई है। रावण दहन से निकलने वाला धुआँ और शोर प्रदूषण का कारण बनता है। इसलिए अब कई जगहों पर पर्यावरण अनुकूल दशहरा मनाने की पहल की जा रही है।
छोटे और कागज/मिट्टी से बने पुतले बनाए जाते हैं।
डिजिटल रामलीला का आयोजन होता है।
वृक्षारोपण जैसी गतिविधियाँ भी इस पर्व से जोड़ी जा रही हैं।
विजयदशमी से मिलने वाली प्रेरणा
सदाचार का पालन करें।
बुराई का डटकर सामना करें।
धैर्य और संयम से विजय संभव है।
नारी शक्ति का सम्मान करें।
सत्य और न्याय के मार्ग पर चलें।
निष्कर्ष
विजयदशमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा देने वाला उत्सव है। यह पर्व हमें यह विश्वास दिलाता है कि चाहे कितनी भी अंधकारमयी परिस्थितियाँ क्यों न हों, अंततः सत्य और प्रकाश की ही विजय होती है। विजयदशमी हमारे अंदर सकारात्मकता का संचार करती है और हमें बुराइयों के खिलाफ लड़ने का साहस देती है।
इसलिए हर वर्ष जब हम रावण का पुतला जलाएँ, तो केवल बाहर की बुराइयों का ही नहीं, बल्कि अपने भीतर की नकारात्मकताओं का भी नाश करने का संकल्प लें। यही विजयदशमी का वास्तविक संदेश है।

