हम सभी को संभवतः आज महसूस होने लगा होगा, विशेषतः जब जब हम Gen-Z की बात करें तो यह लगभग लगभग सिद्ध हो गया है, की हमारी जीवनशैली, हमारे आहार-विहार, हमारे विचारों का स्तर, मुख्यतः हमारी सोच, हमारा व्यवहार, मुख्य रूप से हमारी मनोवृति, हमारी संतानों परिलक्षित होगी ही । बीच का कालखंड मानवता के दौर में ऐसा बीता जब भारत में यूरोपीय जीवनशैली का अंधानुकरण करने की होड लगी थी, भारतीयों को अपनी जीवन शैली, अपना रहन-सहन, हमारे सामाजिक मूल्य, हमारी संस्कृति, हमारा आहार-विहार सब पुराण पंथी लगता था, लोग भारतीय जीवन शैली को छोड़ने में अपनी शान समझने लगे, एकल परिवारों का प्रचलन बढ़ने लगा, संयुक्त परिवारों का विघटन, आपसी भाईचारे का आभाव, आदर्श सामाजिक मूल्यों में गिरावट, यह सब नब्बे के दशक में खूब देखने को मिलीं और अब तो हम सूचना प्रौधयोगिकी के युग में हैं जहां मनुष्य के औजार बनकर रह गया है । ऐसे में हम उस समय हुए बदलावों के परिणाम के रूप में सामने आ रही है Gen-Z जेनरेशन, जिसमें न किसी प्रकार की संवेदनाएं हैं, न किसी के प्रति भाव और न ही जिम्मेदारी का भान हो, शून्य संवेदनाओं का संसार समेटे यह Gen-Z वर्ग के बारे में समझें तो ध्यान में आता है ?
सर्वप्रथम हम इनके सकारात्मक पक्ष को समझें तो बेहतर होगा, इसलिए सामान्यतः हम वर्ष 1997 से 2012 के बीच जन्में लोगों की जेनरेशन को जेन-जी के रूप में जानते हैं. इस जनरेशन को लेकर कहा जा रहा है, इस वर्ग में घूमने-फिरने के साथ-साथ गेमिंग की प्रवृति अत्यधिक पाई जाती है. ये लोग क्रिएटिविटी पर फोकस करते हैं एवं नई चीजों को बहुत जल्दी सीख जाते हैं. मल्टीटास्किंग होने के साथ अपनी मेंटल और फिजिकल हेल्थ को लेकर भी बहुत अवेयर रहते हैं। Gen Z के पास बहुत स्किल है लेकिन हम शायद वो कौशल समझ नहीं पा रहे हैं. जेन-जी के पास मिलेनियल के मुकाबले सोशल मीडिया की बेहतर समझ है वो इंटरनेट कनेक्टेड हैं, जबकि मिलेनियम के पास इन सबकी बहुत ज्यादा जानकारी शायद नहीं है । (ज्ञातव्य हो : मिलेनियल जनरेशन,यानि जिनका जन्म 1981 से 1996 के मध्य हुआ हो)
मिलेनियम जेनरेशन के बच्चों में सहनशक्ति अधिक होती थी एवं एडजस्ट करने की भी शक्ति अधिक होती थी. जबकि उनके अवसर एवं किसी भी चीज के लिए ज्यादा ऑप्शन भी नहीं होते थे, ऐसे में वो मेहनत भी बहुत ज्यादा किया करते थे । वर्तमान में दुनियाभर के बच्चों में कई प्रकार के बदलाव देखने को मिल रहे हैं। इसके कई कारण हैं, जैसे कि आजकल के बच्चों का डिजिटल वर्ल्ड में बहुत अधिक रहना । क्योंकि अब बच्चों को सभी चीज एक क्लिक पर मिलने लगी है, जिसकी वजह से उनका पेशेंस लेवल खोने लगे हैं, सभी के साथ एडजस्मेंट नहीं हो पा रहे हैं,अतः उनमें सोशल स्किल भी बहुत कम होने लगी है । आज के समय में बच्चों को सोशल स्किल और किसी भी चीज को डील करने का तरीका सीखने की जरुरत है । Gen Z जेनरेशन में कॉमन सेंस का अत्यंत आभाव है । आजकल के बच्चों एवं युवाओं को वर्क एथिक्स के साथ ऑफिस वर्क कल्चर के बारे में सिखाया जाना बहुत जरूरी है ।
Gen-Z जेनरेशन फीडबैक नहीं लेना चाहती, इनको लगता है कि हम जो कुछ भी कर रहे हैं, उससे अच्छा कुछ भी नहीं किया जा सकता है. अपने सीनियर्स एवं परिवार के बड़ों के बारे में उन्हें लगता है, कि इनको इतना कुछ नहीं पता है, जितना हमें पता है. उनमें सीखने की ललक के साथ हार्ड वर्क करने की भी इतनी क्षमता भी नहीं होती है। यह जेनरेशन सब कुछ बहुत जल्दी और आसानी से कर लेना चाहती हैं. किसी भी चीज में बिना एफर्ट डालें, वो उस चीज को वहीं छोड़कर आगे बढ़ जाते हैं, इस जनरेशन में मूव ऑन की प्रवृति होती है। अतः इनके मन को समझना बहुत मुश्किल है। कुछ नहीं समझ आया, कुछ असंभव सा लगा तो उसके बारे में जानना, उसके बारे में समझने जिज्ञासा नहीं है इसे युवाओं में, बल्कि उसे छोड़कर आगे बढ़ जाना चाहते हैं, इस बात की परवाह किए बगैर कि उनके लिए, उनके अनुसार किसी ने क्या-क्या व्यवस्थाएं कीं हैं एवं कितना इनवेस्टमेंट किया है । उनको इस बात से कोई मतलब नहीं । चाहे परिवार में उनके बड़े हों चाहे नौकरी में उनके वरिष्ठ हों, चाहे उनके पद की जिम्मेदारी का मामला हो, उन्हें कोई बात नहीं जमी तो वह दूसरे ऑपसन पर ध्यान केंद्रित कर देते हैं, उन्हे किसी के प्रति कोई संवेदना नहीं एवं उनसे क्या आशा एवं अपेक्षा की गई इस बात की परवाह किए बगैर Gen Z के होनहार मुंह फेर का आगे बढ़ने में तनिक में देर नहीं लगाते हैं । डिजिटल वर्ल्ड की जानकारी रखने एवं वहाँ की उपलब्धताओं पर फोकस जीवन शैली के आधीन आज कल के युवाओं में सहनशीलता का आभाव, अपनी अलग जिज्ञासाएं, निरंकुश जीवन, एकल रहन-सहन, रोक-टोक से परे, पारिवारिक संस्कारों से अलग, सामाजिक जिम्मेदारियों से मुक्त, औजारिया जीवन की ओर बढ़ता समाज ही है Gen-Z.
सरकारों ने विकास की बात तो बहुत की, सड़क मार्ग, हवाई मार्ग, ऊंचे ऊंचे भवन, फ्लाई ओवर, पहाड़ तोड़ तोड़कर लंबी लंबी सुरंग तो बहुत बनाईं, युद्ध के समान तो और औजार तो बहुत अत्याधुनिक बनाए, किन्तु सामाजिक मूल्यों के विकास, अपने समाज की दशा-दिशा पर काम करने से विमुखता व्यक्त की, परिणाम आप सभी के समक्ष हैं। सरकार सामाजिक अधिकारिता के नाम पर वर्ग वार आर्थिक पहलू पर तो लीपा पोती करती रही, लेकिन समाज में हो रहे बदलावों पर कोई ध्यान नहीं दिया, इसी का परिणाम है, देश की सरकारी द्वारा चलाई जा रही योजनाओं से लोगों का जुड़ाव ही नहीं हो पाता है, और न ही सरकार द्वारा किए जा रहे विकास कार्यों में सामाजिक भागीदारी देखने को मिलती है । बेरोजगारी पर बहस चल रही है, सरकार कहती है, निरंतर बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में सरकार नौकरी कैसे दे ? वैसे तो भारत को युवाओं का देश कहा जाता है, किन्तु जो हो भी कहते हैं, उन्हें समझना पड़ेगा कि युवाओं को रोजगार भी देना होगा, जब रोजगार की बात आती है, और सरकार की अक्षमता देखने को मिलती है तो एकमात्र सहारा निजी क्षेत्र ही बचता है । अब समझना होगा कि निजी क्षेत्र भी Gen-Z जेनरेशन को लेकर कोई बहुत उत्साहित नहीं है क्योंकि देखा गया है ?
सोशल रिफॉर्म्स एण्ड रिसर्च ऑर्गनाइजेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार, 60% भारत एवं अमेरिकी कंपनियों का अध्ययन करें तो जेन-जी जेनरेशन के कर्मियों को नौकरी से निकलना पड़ता है. वहीं, 75% निजी कंपनियां का मानना हैं, कि उनके यहाँ जेन-जी कर्मचारियों में से कुछ ही कर्मी सही से काम करते हैं अर्थात उन्हें जो काम सही से दिया जाता है, उसे करते हैं। रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में 25% कंपनियां Gen-Z को नौकरी देना चाहती हैं और 17% कंपनियां Gen-Z को नौकरी देने से बचती हैं, या अधिकतर तो सीधा मना ही कर देती हैं. 21% प्रबंधकों का मानना है कि Gen-Z जेनरेशन ऑफिस की समस्याओं की चैलेंज से निपटने के लिए ही तैयार नहीं होते, तो इन्हें रखकर क्या करेंगे । क्योंकि इनमें कम्युनिकेशन स्किल की कमी, ऑफिस कल्चर में एरजेस्ट नहीं हो पाते, यह सोशल मीडिया से अत्यधिक प्रभावित होते हैं, एवं सबसे बड़ी बात यह जल्दी ही छोटी-छोटी बातों से नाराज हो जाते है, लगातार फोन बने रहने का स्वभाव भी कंपनियों के लिए परेशानी का बहुत बड़ा कारण बना हुआ है ।
अब बात यहाँ मात्र नौकरियों या ऑफिस कल्चर तक ही सीमित नहीं है, क्योंकि यह समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, यहाँ बात युवक-युवतियों दोनों की हो रही है । इसलिए आज इस बात पर बहस होनी चाहिए कि हम समाज में कैसे सामाजिक, नैतिक मूल्यों को बचाएं एवं इनको जीवन का हिस्सा बनाएं, अगर इसी तरह यह सामाजिक गिरावट आती रही तो समाज की दशा दिशा क्या होगी, हम कैसे समाज की ओर बढ़ रहे हैं, इसे समझना होगा ।
लेखक:
(प्रमोद कुमार)
अध्यक्ष सोशल रिफॉर्म्स एण्ड रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (SRRO), नई दिल्ली
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