जलवायु परिवर्तन 21वीं सदी की सबसे गंभीर वैश्विक चुनौतियों में से एक हो गया है। पृथ्वी का बढ़ता तापमान, बदलता मौसमी चक्र, और अप्रत्याशित प्राकृतिक आपदाएं अब किसी भविष्यवाणी का विषय नहीं, बल्कि एक जीवंत सच्चाई हो गई हैं।
2025 में भारत ने इस परिवर्तन के कई सीधे प्रभावों का सामना किया, विशेषकर गर्मियों की भीषणता, मानसून की अस्थिरता और इसके साथ ही पर्यावरण नीतियों में हो रहे बदलावों के संदर्भ में।
भारत में 2025 की गर्मी: अब तक की सबसे गर्म गर्मी?
2025 की गर्मी ने इतिहास रच दिया। भारत के कई हिस्सों में तापमान ने पूर्व के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए।
विशेष रूप से उत्तर भारत, मध्य भारत और पश्चिमी भारत के कुछ राज्यों जैसे कि राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में तापमान 48 से 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच गया।
हीटवेव की स्थिति
भारत मौसम विभाग (IMD) के मुताबिक, अप्रैल और मई के महीनों में करीब 23 दिनों तक “हीटवेव” की स्थिति रही।
कुछ क्षेत्रों में यह तीन सप्ताह से ज्यादा के लिए बनी रही, जिससे जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो गया। अस्पतालों में हीट स्ट्रोक के केस बढ़े, और सड़कें दोपहर के समय वीरान नज़र आने लगीं।
मुख्य कारण
– विशेषज्ञों का मानना है कि इस अधिक गर्मी के पीछे कई कारण हैं
– राइजिंग ग्लोबल वॉर्मिंग के प्राथमिक कारण पृथ्वी की औसत सतही तापमान में लगातार और संवेगात्मक रुझान।
– अर्बनाइजेशन और कंक्रीट के जंगलों का फैलाव, जिससे “अर्बन हीट आइलैंड” प्रभाव का निर्माण होता है।
– वनस्पति विनाश और हरियाली में कमी, जिससे प्राकृतिक शीतलन प्रणाली नष्ट होती है।
– ग्रीनहाउस गैसें जैसे कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन का अनियंत्रित उत्सर्जन।
मानसून की भविष्यवाणी और उसका प्रभाव
भारत में कृषि और जल संसाधनों की दृष्टि से मानसून जीवनदायिनी मानी जाती है। परंतु जलवायु परिवर्तन ने मानसून के स्वरूप को भी काफी हद तक प्रभावित किया है।
2025 की मानसून पूर्वानुमान
भारतीय मौसम विभाग ने अप्रैल 2025 में भविष्यवाणी की थी कि इस साल दक्षिण-पश्चिम मानसून सामान्य से 5-8% कम वर्षा लेकर आएगा, यानी लगभग 92-95% LPA (Long Period Average)।
मानसून का वितरण और असंतुलन
Though total rainfall across the country was roughly estimated, its distribution was uneven:
उत्तर भारत:
कम वर्षा के कारण हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सिंचाई पर बढ़ती निर्भरता।
पूर्वोत्तर भारत:
असम और मेघालय के तरह के राज्यों में वर्षा 30-40% अधिक हुई, जिससे बाढ़ की स्थिति बन गई।
दक्षिण भारत:
कर्नाटक के कुछ खंडों और केरल में अत्यधिक वर्षा फैल गई जबकि आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में बहुत कम।
प्रभाव
कृषि:
खरीफ फसलों की बुवाई बारिश में असंतुलन के कारण देर से शुरू हुई। धान, मक्का, कपास और दालों की कटाई में कमी दर्ज की गई।
जल संकट:
भूजल स्तर में भारी गिरावट दर्ज की गई, जो मराठवाड़ा और बुंदेलखंड क्षेत्रों में विशेष रूप से हुआ।
बाढ़ और सूखा:
एक ओर जहां असम और बिहार में बाढ़ के कारण लाखों लोग प्रभावित हुए, वहीं राजस्थान और विदर्भ क्षेत्र में सूखे जैसी स्थिति बनी रही।
पर्यावरण नीति में 2025 के बदलाव
इन जलवायु आपदाओं और मौसमी अस्थिरताओं को देखते हुए भारत सरकार ने 2025 में कई महत्वपूर्ण पर्यावरणीय नीतिगत निर्णय लिए। ये निर्णय देश को हरित विकास की ओर ले जाने का प्रयास हैं।
1. विस्तारेशन राष्ट्रीय हरित ऊर्जा मिशन
सरकार ने 2030 तक देश की 60% बिजली उत्पादन क्षमता को नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त करने की घोषणा की। इसके लिए:
– सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं को विशेष प्रोत्साहन मिला।
– ग्रीन हाइड्रोजन परियोजनाओं को प्रायोगिक तौर पर शुरू किया गया।
– निजी क्षेत्र को हरित ऊर्जा में निवेश के लिए टैक्स में रियायतें दी गईं।
2. जल प्रबंधन नीति 2025
इस नीति के तहत:
– शहरी क्षेत्रों में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग को अनिवार्य किया गया।
– नदी पुनर्जीवन योजनाओं को पुनर्सक्रिय किया गया, जैसे गंगा, यमुना और कावेरी के संरक्षण कार्यक्रम।
– ग्रामीण क्षेत्रों में तालाबों, झीलों और कुओं के संरक्षण हेतु विशेष फंड बनाया गया।
3. कार्बन उत्सर्जन नियंत्रण
– उच्च प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर कार्बन टैक्स लागू किया गया।
– इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए नयी सब्सिडी योजना शुरू की गई।
– LARGE CITIES में ग्रीन ज़ोन घोषित किए गए जहाँ डीजल-पेट्रोल वाहनों पर रोक लगाई गई।
जनता और समाज की भूमिका
नीतियाँ तब तक कारगर नहीं हो सकतीं जब तक समाज और नागरिक अपनी जिम्मेदारियाँ न निभाएं। 2025 में कई सिविल सोसाइटी और युवा संगठनों ने मिलकर पर्यावरण जागरूकता अभियान चलाए:
– ‘एक घर, एक पेड़’ अभियान के तहत लाखों पौधे लगाए गए।
– प्लास्टिक मुक्त अभियान को गति मिली।
– schools and colleges में पर्यावरण शिक्षा को वरीयता दी गई।
निष्कर्ष:
आगे की राह
2025 ने हमें यह सिखाया कि जलवायु परिवर्तन एक वैज्ञानिक या पर्यावरणीय मुद्दा नहीं है, लेकिन यह सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दा भी बन चुका है।
अगर समय पर कड़े कदम उठाए न जाएं, तो आने वाले वर्षों में स्थिति और गंभीर हो सकती है।
सरकार, उद्योग, समाज और प्रत्येक नागरिक को मिलकर एक सतत, पर्यावरण-अनुकूल जीवनशैली अपनाने की आवश्यकता है। वरना आने वाली पीढ़ियाँ हमसे पूछेंगी कि जब वक्त था, तब हमने क्या किया?
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