निर्णय लेने का सुख: जीवन में निर्णय तो लेने ही पड़ते हैं, या फिर ऐसे कहें कि आपको हर पल निर्णय लेने ही होते हैं, हाँ यह बात सत्य है ! किन्तु स्वयं के लिए लेने हों तो वह आपका पुरुषार्थ कहलाएगा और कहीं यह अपने से दूसरों के लिए जैसे परिवार, कुटुंब किसी समूह या समाज के लिए लेने की बात हो तो आपके व्यक्तित्व की सामाजिक प्रामाणिकता का परिचायक है। किन्तु यदि आपके जीवन में इसकी अधिकता होती गई तो यह आपके लिए एक व्याधि बन जाएगी । आपके व्यक्तित्व में प्रवेश करने वाले अहंकार का यह छद्म रूप है, जो आपको भविष्य में कहीं का नहीं छोड़ेगा ।
इसका प्रारम्भिक रूप आपके मन में आने वाली कल्पनाएं हैं :-
यह सर्वदा सत्य है, कि आपके मन में पहुँचने वाला अथवा बैठने वाला कोई भी भी विषय पहले नेत्रों से प्रवेश करता है, फिर बाकी आगे विभिन्न रूपों में फैलता चला जाता है । जब आप अपने परिवार में अपने से बड़ों को निर्णय करते हुए देखते हैं, समाज में प्रमुख लोगों को निर्णय करते हुए देखते हैं । अपने परिवार में भी यदि वातावरण ऐसा है जहां निर्णय करने वालों की ठसक से आप प्रभावित हो जाते हैं । आप निर्णय करने वालों के रुतबे और उनको मिलने वाले सम्मान और अहमियत से प्रभावित होकर, अपने बारे में कल्पनाएं करने लग जाते हैं, बिना यह विचार किए कि जिन्हें समाज में, परिवार में वह अहमियत मिल रही है, उसके पीछे उनका परिश्रम, उनकी व्यक्तिगत प्रमाणिकता, साधना और सुचिता से उनका जीवन रहा होगा, बिना उनके श्रम और साधना का विचार किए, उनको मिलने वाले सुख और सम्मान को प्राप्त करने की अभिलाषा ही, अथवा उसके बारे में आपके द्वारा की जाने वाली कल्पना ही आपको सपनों के संसार में ले जाती है । आप भी अपने आपको निर्णय करने में चतुर समझने लगते हो, आपका मन हर जगह अहम भूमिका निभाने का होने लगता है, जहां आपको अहमियत न मिले, जहां आपको निर्णय करने की भूमिका से वंचित रखा जाता हो वहाँ से आप दूरी बनाने लगते हो । एवं जिन लोगों को आपके मन में बैठी इस बात का पता चलने लगता है, वह लोग आपकी कमजोरी का लाभ उठाकर आपसे अनुचित कार्य करवाने लग जाते हैं और आप करते भी हैं ।
निर्णय लेने की क्षमता
आपके व्यक्तित्व में निर्णय लेने की क्षमता यदि विकसित हो जाए तो यह आपका सर्वोत्तम गुण साबित हो सकती है । किन्तु आप ही मात्र अच्छा और योग्य निर्णय ले सकते हैं अथवा किसी विषय का केवल आप निर्णय लेंगे तो लोगों में आपका सम्मान बढ़ेगा यह बात आते ही आपका यह गुण कब आपका अवगुण बन जाएगा आपको पता ही नहीं चलेगा ।
आप अपने जीवन में समय के अनुसार अपने लिए यदि सही निर्णय लेने लगते हैं तो आप अपने जीवन में वो सब पाने लगेंगे, जिसके लिए आपने जन्म लिया है । कभी-कभी आप सुनते भी होंगे और कभी-कभी आपको स्वयं भी महसूस होता होगा कि सही समय पर यह निर्णय ले लिया जाता तो आज क्या से क्या हो जाता । इसलिए जो मनुष्य अपने विवेक से, अपने आपमें आत्मिक ऊर्जा को जागृत कर, समाज और सृष्टि से सामंजस्य बैठाकर, अपने आपमें आत्मिक निर्भीकता विकसित कर निर्णय लेने की क्षमता का विकास करने में दक्ष हो जाते हैं तो यह विलक्षणता आपको समाज में समुचित स्थापत्य प्रदान कर सकती है । आप अपने जीवन में समुचित सम्मान और महत्वता के भागी होंगे ।
निर्णय लेने का सुख
जिसमें सम्मान हो, आपकी महत्वता हो, आप सबके केंद्र में रह सकने वाली अवस्था में हों, तो यह किसको अच्छा नहीं लगेगा । यही मृग मारीचिक आपको गर्त में ले जाएगी । इस सुख की कल्पना करने मात्र से आप इसकी ओर बढ़ते चले जाएंगे, फिर आप ऐसे अवसर खोजने लगेंगे और फिर आप चाहे अनचाहे ऐसे माहौल में अपने आपको रखने लगेंगे, जहां आपको अधिक से अधिक निर्णय लेने के अवसर मिल रहे होंगे । आपको मिलने वाला महत्व ही आपके लिए विष बनने लगेगा, आपके निर्णय से प्रारंभ में जो लोग अत्यधिक प्रभावित होते थे, संतुष्ट और आपके प्रति आकर्षित होते थे, उनकी विमुखता आप स्वयं भी महसूस करेंगे और लोगों में भी यह चर्चा का विषय बनने लगे । समाज की विमुखता आपसे सहन नहीं होगी साथ ही दूसरी ओर आपके स्वभाव में हर समय दूसरों के लिए निर्णय करने दंभ विकसित हो जाएगा, यह सुख से अधिक आपके लिए व्याधि बन जाएगी निर्णय सुख के वशीभूत आप इसी दुनियाँ में रखना पसंद करेंगे, ऐसे ही लोग और ऐसा ही माहौल आपको पसंद आने लगेगा । और यही आपकी कमजोरी बन जाएगी ।
आपने देखा और सुना होगा, कि कोई व्यक्ति अपनी गद्दी से उतरा, अपने पद से मुक्त हुआ, या बड़े बड़े अधिकारी जब रिटायर्ड होते हैं तो उनमें से अधिक लोग जल्दी बीमार होने लगते हैं या मानसिक अवसाद में चले जाते हैं। आखिर क्यों ?
जबकि उनके पास धन-संपत्ति, परिवार, मित्र -यार आदि की कोई कमी नहीं होती, मात्र के एक ही अवस्था नहीं होती कि अब वे वो सब निर्णय नहीं ले रहे होते जो वो लेते थे !
निर्णय लेने का सुख और कला
निश्चित रूप से निर्णय लेना एक कला है ! और आपके परिपक्व व्यक्तित्व का परिचायक भी । इसलिए हमेशा एक बात समझने की जरूरत है, कि जब भी सरकार द्वारा अपने यहाँ अधिकारियों का चयन होता है, तो वहाँ शैक्षिक योग्यता से अधिक अभ्यार्थी की निर्णय क्षमता देखी जाती है । इसके अतिरिक्त आप किसी भी क्षेत्र में सफलतम व्यक्तियों को देखिए तो उसकी सफलता के मूल में उनके निर्णय हो होंगे, जैसे उन्होंने अपनी जिंदगी में, जब-जब निर्णय लिए, वही उनकी सफलता और विफलता का आधार बने ।
आप अपने व्यक्तित्व में अपनी आत्मिक ऊर्जा, अपने विवेक के सदुपयोग करके, अपने आत्मबल एवं अपनी दृष्टि को विशाल करते हुए अपने आप में निर्णय करने की कला को विकसित कर सकते हैं । आपके बौद्धिक विकास एवं आपकी निर्भीकता के कुशलतम सामंजस्य से आप आपमें निर्णय करने की कला को और अधिक पुष्टता से कर सकते हैं । ऐसी अवस्था में आपको अपने लिए यश, कीर्ति की अभिलाषा से विमुक्त होने पर भी आपको ख्याति मिलेगी ही क्योंकि यह सद्गुण आपके व्यक्तित्व और आपके स्वभाव का अंग बन चुका होगा ।
निर्णय लेने की क्षमता और दंभ में कैसे करें भेद
जब जब हम अपने लिए, अपने बारे में, अपने अनुकूल, अपने स्वभाव, अपने लक्ष्य एवं रुचि के अनुसार अपने लिए निर्णय लेते हैं अथवा जिनको सच में आपसे आपके द्वारा निर्णय करवाने की अपेक्षा हो, ऐसी दो प्रमुख अवस्थाओं में आपके द्वारा लिए निर्णय एक स्वाभाविक व्यवस्था है, जो आपको लेने ही चाहियें । आपकी बौद्धिक क्षमता, आपके देखने समझने की शक्ति, आपकी वैचारिक तर्कशक्ति, आपका आत्मबोध, आपकी संवेदनशीलता, आपकी निर्भीकता, आपकी सहजता जैसे गुण आपमें अंतर्ज्ञान अर्थात आपकी इंट्यूशन को मजबूत करते हैं और आपने सटीक निर्णय लेने की क्षमता विकसित होने लगती है ।
किन्तु जब आप नाम, अपनी ख्याति और महत्व को बढ़ाने की मनसा से निर्णय लेना चाहते हों, तो इस अवस्था को दंभ के मार्ग पर पहला कदम मान सकते हैं आप !
बहुत बाद में पता चलता है
जब-जब आप किसी मन चाही अभिलाषा को पाने लगते हैं अथवा उसे पाने और उसका उपभोग करने लगते हैं तो आप अपने आपको तर्क के स्तर पर सहमति भी प्रदान करते हैं और उस अवस्था और व्यवस्था को स्वीकार भी कर लेते हैं, और जब यह प्रक्रिया चल रही होती है तब आपको भान ही नहीं होता है कि आप अपने अंतर्मन को किस दिशा की ओर ले जा रहे हैं । जब आप निर्णय लेने में सुख और सम्मान की अनुभूति करने लगते हैं तो आप इसके बिना रहा नहीं पाते हैं । इसी कारण आप अपने आसपास ऐसे व्यवस्था खड़ी कर लेते हैं जहां सबकुछ आपके निर्णय पर ही टिका हो या फिर ऐसे स्थान अथवा व्यवस्था में ही रहना पसंद करते हैं जहां आपने बिना पत्ता भी नहीं हिलता हो । अंत में यही व्याधि का कारण बनता है, निर्णय करने को अधिकार नहीं जिम्मेदारी समझिए, दायित्व समझिए, निर्णय लेने के उपरांत अथवा निर्णय प्रक्रिया समाप्त होने के उपरांत सहज रहिए ।
निर्णय लेने का सुख: समुचित निर्णय यानि क्या ?
जो निर्णय स्वयं अथवा किसी अन्य को कष्ट न देते हुए, अपनी एवं समाज की प्रगति को सुनिश्चित करता हो वही निर्णय सर्वोपरि है, किन्तु उचित समय पर लिया गया हो । आपने सुना होगा समय पर नहीं लिया गया निर्णय भी अन्याय ही है । इसलिए निर्णय चाहे किसी न्यायालय द्वारा किसी अपराधी या निरपराधी के संबंध में हो अथवा किसी व्यवस्था या परिस्थिति में हो, सभी प्रकार से निर्णय लेने में समय का बहुत महत्व है । किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि आप जल्दबाजी में कोई अनुचित निर्णय ले लें । इसी का संतुलन रखना एवं समझ रखना ही समुचित निर्णय है ।
निर्णय लेने की कला ही बढ़ाती आपमें नेत्रत्व क्षमता
आपके व्यक्तित्व में विकसित होने वाली नेत्रत्व शीलता में सबसे बाद गुण है, निर्णय लेने की कला का विकास हो जाना । इसके लिए आप समाज के विभिन्न क्षेत्रों में जैसे व्यवसाय, राजनीति, रक्षा, खेल एवं सामाजिक क्षेत्रों में जितने भी नेता हुए, उनके सभी गुणों एवं विशेषताओं में से प्रमुख है निर्णय लेने की क्षमता । जो सही समय पर जैसा फैसला लेगा उसी अनुरूप उसे परिणाम मिलेगा । इसलिए जिंदगी में आपकी सफलता का आधार भी आपके फैसले ही होते हैं । आपके यही फैसले आपको आसमान से घरती पर और धरती से आसमान तक पहुंचा सकते हैं । इसलिए अपने आप में निर्णय लेने की क्षमता का विकास करते रहिए ।
लेखक: प्रमोद कुमार
प्रेरक प्रवक्ता, नई दिल्ली,भारत
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