जिनका नाम अविमुक्तेश्वरानंद है, ये मूलतः उत्तर प्रदेश के प्रताप गढ़ जिले के रहने वाले हैं। बचपन में इनका नाम उमा शंकर पांडे था। ये कांग्रेस की छात्र इकाई राष्ट्रीय छात्र संगठन के न केवल सक्रिय सदस्य रहे, बल्कि उसी के बैनर तले वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में छात्र संघ के महामंत्री भी बने।
अविमुक्तेश्वरानंद की राजनीति से शंकराचार्य बनने का सफर
यह आरम्भ में स्थानीय कांग्रेस नेताओं के लिए छोटे मोटे धरना प्रदर्शन का काम किया करते थे, लेकिन राजनीति में इनका सिक्का नहीं जम पाया। बाद में ये कांग्रेस के पिट्ठू रहे शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती से दीक्षा लेकर अविमुक्तेश्वरानंद बन गए।
शंकराचार्य पद पर विवाद
सबसे वयोवृद्ध शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती के अनुसार, अपने गुरु की मृत्यु के बाद इन्होंने जो उत्तराधिकार पत्र दिखाकर शंकराचार्य का पद हड़पा, वह पत्र कभी दिया ही नहीं गया था। इन्हें शंकराचार्य पद पर नियुक्त करने वाली संस्था काशी विद्वत परिषद ने भी मान्यता नहीं दी। सुप्रीम कोर्ट ने भी इनके शंकराचार्य पद के निर्वहन पर रोक लगा दी है। कानूनी रूप से इन्हें स्वयं को शंकराचार्य कहना सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का अपराध माना जाता है।
धार्मिक और राजनीतिक संबंध
फिर भी ये स्वयं को शंकराचार्य कहते हैं, जबकि अन्य शंकराचार्यों समेत अधिकांश धर्माचार्य इन्हें इस पद के योग्य नहीं मानते। ये अखिलेश यादव से हंसते-खेलते मिलते देखे गए थे और आज इन्होंने योगी जी का इस्तीफा मांगा है। इन्होंने उद्धव ठाकरे को समर्थन दिया था, लेकिन ठाकरे के शासनकाल में साधुओं की हत्या पर कभी इस्तीफा नहीं मांगा।
उद्धव ठाकरे शासनकाल और साधुओं की हत्या
उद्धव ठाकरे के शासनकाल में चार हिंदू संतों की हत्या के बावजूद इन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। इतना ही नहीं, उस समय पुलिस और सरकार द्वारा संदिग्ध अपराधियों को बचाने का पूरा प्रयास किया गया। यदि घटना का वीडियो सोशल मीडिया में वायरल नहीं हुआ होता, तो उद्धव सरकार उसे दुर्घटना बता देती।
VIP व्यवस्था और धर्म के प्रति दृष्टिकोण
अविमुक्तेश्वरानंद पूर्ण VVIP व्यवस्था में रहते हैं। मंदिर या किसी धार्मिक स्थान पर जाने पर भी इनके साथ चांदी का सिंहासन जाता है। लेकिन जब VIP व्यवस्था के कारण भेदभाव होता है, तो इन्हें सरकार पर गुस्सा आता है।
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद और राजनीति
क्या कोई राजनेता किसी शंकराचार्य से कह सकता है कि आप ठीक से पूजा-पाठ नहीं कर रहे हो, इसलिए इस्तीफा दे दो? यदि नहीं, तो किसी शंकराचार्य को भी राजनेता से इस्तीफा मांगने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए। धर्म व्यवस्था और राज्य सत्ता अपने-अपने विधान के अनुसार चलनी चाहिए।
निष्कर्ष: अविमुक्तेश्वरानंद को मर्यादा में रहना आवश्यक
अगर नकली शंकराचार्य राजनीति में हस्तक्षेप करेंगे और विरोधियों के हाथों खेलेंगे, तो जनता के बीच उनकी प्रतिष्ठा गिरना तय है। इसके लिए वे स्वयं जिम्मेदार होंगे। इन्हें अपनी मर्यादा में रहकर कार्य करना चाहिए।