India’s Waqf Amendment Bill को राष्ट्रपति की मंज़ूरी मिलने के बाद यह अब आधिकारिक रूप से क़ानून बन चुका है। लेकिन जैसे ही इस क़ानून की मुहर लगी, न सिर्फ भारत के भीतर कई मुस्लिम संगठनों और विपक्षी दलों ने इसका विरोध जताया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रतिक्रियाएं शुरू हो गईं—खासतौर पर पाकिस्तान और बांग्लादेश से।
🌍 पड़ोसी मुल्कों से उठी निंदा की आवाज़ें
📌 बांग्लादेश की प्रतिक्रिया
बांग्लादेश की धार्मिक और छात्र राजनीतिक संस्थाओं ने खुलकर इस क़ानून की आलोचना की है। जमात-ए-इस्लामी के जनरल सेक्रेटरी और पूर्व सांसद प्रोफेसर मिया गोलाम पोरवार ने इस संशोधन को “मुस्लिम विरोधी” करार देते हुए कहा कि भारत में मुस्लिम समुदाय की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को निशाना बनाया जा रहा है।
उन्होंने कहा, “बीजेपी सरकार लगातार मुस्लिमों के अधिकारों और धार्मिक आज़ादी को सीमित करने की दिशा में काम कर रही है। यह वक़्फ़ संशोधन भी उसी रणनीति का हिस्सा है।”
सिर्फ इतना ही नहीं, बांग्लादेश की इस्लामी छात्रशिबिर ने भी इस पर गहरा ऐतराज़ जताते हुए देशभर में विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं। हाल ही में ढाका के शाहबाग़ में छात्रशिबिर की ओर से एक मानव शृंखला भी बनाई गई जिसमें कई छात्र नेताओं और विश्वविद्यालय प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
इन संगठनों का कहना है कि यह क़ानून मुसलमानों की धार्मिक संपत्तियों—जैसे मस्जिदों, मदरसों, कब्रिस्तानों और धार्मिक आश्रयस्थलों—में सरकारी हस्तक्षेप का रास्ता खोल देता है। इसके तहत वक़्फ़ बोर्ड और सेंट्रल वक़्फ़ काउंसिल में दो ग़ैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना अनिवार्य कर दिया गया है, जिसे उन्होंने धार्मिक मामलों में सीधा दख़ल बताया है।
📌 पाकिस्तान की प्रतिक्रिया
दूसरी ओर, पाकिस्तान की मीडिया और विश्लेषक इस विधेयक को “हिंदू मैजोरिटेरियन एजेंडा” के तहत देख रहे हैं। डॉन, एक्सप्रेस ट्रिब्यून और ARY न्यूज़ जैसे प्रमुख मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रकाशित रिपोर्टों में कहा गया है कि भारत में अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुसलमानों को लक्षित करने की यह एक और कड़ी है।
पाकिस्तानी विश्लेषक डॉ. क़मर चीमा ने कहा, “यह कोई isolated case नहीं है। ट्रिपल तलाक़ से लेकर हिजाब बैन तक, हर कदम एक बड़े प्लान का हिस्सा लगता है, जिसका उद्देश्य मुसलमानों के सामाजिक प्रभाव को कमज़ोर करना है।”
उन्होंने भारत की सरकार पर यह आरोप भी लगाया कि यह वक़्फ़ संपत्तियों को “डिजिटलाइजेशन” या “रिफॉर्म” के नाम पर नियंत्रण में लेने की प्रक्रिया है।
📱सोशल मीडिया और यूट्यूब पर भी प्रतिक्रियाएं
बांग्लादेश के यूट्यूबर सुमोन कै़स ने एक्स (पहले ट्विटर) पर एक वीडियो पोस्ट कर कहा कि यह विधेयक मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों का “सिस्टमेटिक ट्रांसफर” है। उनके मुताबिक, अब तक जिन संपत्तियों पर केवल मुस्लिम समुदाय का नियंत्रण था, वहां अब दूसरे समुदायों को भी दख़ल मिलेगा।
उन्होंने कहा, “यह सिर्फ भारत के मुसलमानों की नहीं, बल्कि पूरी मुस्लिम उम्मत की जिम्मेदारी है कि वो इस मुद्दे पर अपनी आवाज़ उठाएं।”
🕌 वक़्फ़ क्या होता है और भारत में इसकी स्थिति?
वक़्फ़ का मतलब होता है किसी संपत्ति को अल्लाह के नाम पर समर्पित करना, ताकि उसका इस्तेमाल धार्मिक और सामाजिक भलाई के कार्यों के लिए हो सके। ये संपत्तियाँ निजी स्वामित्व से मुक्त होती हैं और इन्हें बेचा या हस्तांतरित नहीं किया जा सकता।
भारत में लगभग 8.7 लाख वक़्फ़ संपत्तियाँ हैं, जिनकी कुल क़ीमत करीब 1.2 लाख करोड़ रुपये आंकी जाती है। ये संपत्तियाँ पूरे देश में फैली हैं और उनका इस्तेमाल समुदाय के कल्याण के लिए होता है।
📊 क्यों है यह बिल विवादों में?
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वक़्फ़ बोर्ड में ग़ैर-मुस्लिम सदस्यों की अनिवार्यता।
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मुस्लिम संगठनों का दावा: मस्जिद, मदरसा, कब्रिस्तान आदि में सरकारी हस्तक्षेप बढ़ेगा।
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सरकार का पक्ष: यह बिल पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए है।
✅ निष्कर्ष: चिंता सिर्फ भारत की नहीं, वैश्विक है
भारत का वक़्फ़ संशोधन क़ानून एक संवेदनशील मुद्दा बन चुका है, जिसका प्रभाव सिर्फ देश के अंदर ही नहीं, बाहर भी महसूस किया जा रहा है। बांग्लादेश और पाकिस्तान की प्रतिक्रियाएँ दिखाती हैं कि यह सिर्फ कानूनी या प्रशासनिक मुद्दा नहीं है—बल्कि एक ऐसा सामाजिक और धार्मिक मामला है जिसमें भावनाएं, पहचान और अधिकार भी शामिल हैं।
भविष्य में इस क़ानून का असल प्रभाव कैसा होगा, यह तो वक़्त ही बताएगा। लेकिन इतना ज़रूर है कि पड़ोसी देशों की निगाहें भारत की इस नई नीति पर टिकी रहेंगी।
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