20 जून/इतिहास-स्मृति

20 जून/इतिहास-स्मृति

पंडित बीरबल धर का श्रीनगर प्रवेश

पंडित बीरबल धर का श्रीनगर प्रवेश

भारत के नंदनवन कश्मीर ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। किसी समय काशी से भी अधिक महत्व होने के कारण पूरे देश से छात्र यहां पढ़ने आते थे। फिर वह समय भी आया जब आतंकवादियों ने कश्मीर घाटी से हिन्दुओं को उजाड़ दिया; पर कश्मीर का यह इस्लामीकरण एक दिन में नहीं हुआ।

शाहमीर के शासन से लेकर अफगान सूबेदार आजिम खान तक यह चलता रहा। इस दमन और धर्मान्तरण की प्रक्रिया का ही यह प्रसंग है।

आजिम खान के समय में जब अत्याचार बहुत बढ़ गये, तो सब हिन्दुओं ने अपने मुखिया पंडित बीरबल धर को पंजाब में महाराजा रणजीत सिंह के पास भेजा।

वे वेष बदलकर अपने पुत्र राजा काक के साथ जम्मू चल दिये। जाने से पूर्व उनकी पत्नी ने वचन दिया कि वह प्राण देकर भी अपने पवित्र हिन्दू धर्म और सम्मान की रक्षा करेगी।

उनके जाने की जानकारी सूबेदार को मिली, तो उसने सैनिक दौड़ाए; पर तब तक कुछ स्थानीय मुसलमानों के सहयोग से वे पीरपंजाल पर्वत पारकर बहुत दूर निकल गये थे। गुस्से में उसने सैकड़ों हिन्दुओं को मारकर बीरबल धर की पत्नी और पुत्रवधू को बंदी बना लिया।

बीरबल धर को पहले से ही इसका अनुमान था। इसलिए वे अपने एक विश्वस्त मुस्लिम मित्र कादिस खान गोजावरी को उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी देकर गये थे।

उसने दोनों महिलाओं को अपने घर में छिपा लिया। आजिम खान के सैनिक जब निराश होकर वापस लौट रहे थे, तभी कादिस खान के एक साथी ने उनके छिपने की जानकारी सैनिकों को दे दी। इस पर कादिस खान को मारकर दोनों महिलाओं को पकड़ लिया गया।

उन दोनों को दरबार में प्रस्तुत किया गया; पर उससे कुछ समय पूर्व सास ने चुपचाप एक हीरा निगल लिया। उसने आजिम खान को खूब खरी-खोटी सुनाई और फिर वहीं उसकी मृत्यु हो गयी।

इसका बदला आजिम खान ने बहू पर उतारा और उसे एक अफगान सरदार के साथ काबुल भेज दिया। वहां उस पर क्या बीती और कैसे अत्याचार हुए होंगे, कोई नहीं जानता।
इस घटनाक्रम के बीच बीरबल धर तेजी से आगे बढ़ते हुए जम्मू के राजा गुलाब सिंह के पास पहुंच गये। गुलाब सिंह ने उन्हें महाराजा रणजीत सिंह के प्रधानमंत्री ध्यानसिंह के नाम एक पत्र देकर उनके सुरक्षित लाहौर पहुंचने की व्यवस्था कर दी।

उनकी व्यथा सुनकर महाराजा बहुत दुखी हुए। उन्होंने अपनी सेना को तुरन्त उधर कूच करने का आदेश दिया। बीरबल धर ने अपने पुत्र राजा काक को जमानत के तौर पर लाहौर दरबार में छोड़ दिया और सेना के साथ उन्हें रास्ता बताते हुए कश्मीर की ओर चल दिये।

महाराजा की इस सेना में जम्मू के राजा गुलाब सिंह, हरिसिंह नलवा, ज्वाला सिंह, हुकम सिंह और श्याम सिंह जैसे पांच श्रेष्ठ सेनानायक थे। इनके नेतृत्व में सेना ने आजिम खान को धूल चटा दी।

उसका सेनापति जबर खान दुम दबाकर भाग खड़ा हुआ। इस प्रकार कश्मीर से क्रूर अफगान शासन समाप्त हुआ। 20 जून, 1819 का वह शुभ दिन था, जब पंडित बीरबल धर विजयी सेनाओं के साथ श्रीनगर पहुंचे।

महिलाओं ने मंगल आरती और तिलक के साथ उनका स्वागत किया। पूरे क्षेत्र में दीवाली जैसा उत्साह छा गया।
कश्मीर में अगले 27 साल तक महाराजा रणजीत सिंह का शासन रहा। इस दौरान दस गवर्नर नियुक्त हुए। शासन की नीतियां सबके लिए समान थीं।

किसी भी धर्म या मजहब वाले पर अत्याचार नहीं होता था। मुस्लिम जागीरदारों का दमनचक्र समाप्त हो गया। मंदिरों में घंटे और आरती के स्वर फिर से गूंजने लगे। कश्मीर घाटी में स्वर्ण युग लौट आया; पर इसके लिए पंडित बीरबल धर के परिवार ने जो बलिदान दिया, उसे सदा याद रखा जाएगा।

📌 लेखक: KPR News डेस्क
📅 प्रकाशित: 20June 2025

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