अक्षय तृतीया – सुख, समृद्धि और शुभता का पर्व

अक्षय तृतीया

भारत एक ऐसा देश है जहाँ हर पर्व किसी न किसी आध्यात्मिक, सामाजिक या सांस्कृतिक परंपरा से जुड़ा होता है। इन्हीं में से एक बहुत पावन और शुभ दिन है – अक्षय तृतीया, जिसे कई जगहों पर आखा तीज भी कहा जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके पीछे छिपे गहरे अर्थ और परंपराएं भी जीवन को सकारात्मक दिशा देती हैं।

अक्षय तृतीया का अर्थ और तिथि

‘अक्षय’ का मतलब होता है – जो कभी समाप्त न हो। ‘तृतीया’ का मतलब है – तीसरी तिथि। यानी यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तीसरी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन जो भी अच्छे कार्य किए जाते हैं, उनका फल कभी खत्म नहीं होता – यही इसकी खासियत है।

धार्मिक और पौराणिक महत्व

अक्षय तृतीया

अक्षय तृतीया को हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और शुभ माना गया है। इसके पीछे कई पौराणिक कथाएं और मान्यताएं जुड़ी हुई हैं:

  • भगवान परशुराम का जन्म इसी दिन हुआ था, जो भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं।

  • महाभारत काल में पांडवों को वनवास के समय अक्षय पात्र इसी दिन मिला था, जिससे कभी भी भोजन खत्म नहीं होता था।

  • कहा जाता है कि गंगा नदी का अवतरण भी इसी दिन हुआ था।

  • कुबेर, जो धन के देवता हैं, उन्हें इसी दिन अपार धन-सम्पदा प्राप्त हुई थी।

  • सुदामा, जब भगवान कृष्ण से मिलने गए थे और चावल भेंट किए थे, तो उन्हें भी इसी दिन अक्षय फल मिला।

इन सब कारणों से यह दिन शुभ कार्यों की शुरुआत के लिए बहुत ही उत्तम माना जाता है।

इस दिन क्या करते हैं?

अक्षय तृतीया के दिन लोग कई तरह के धार्मिक और सामाजिक कार्य करते हैं। कुछ प्रमुख परंपराएं इस प्रकार हैं:

1. सोना खरीदना

इस दिन सोना खरीदना बहुत शुभ माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि इस दिन खरीदा गया सोना घर में समृद्धि और सुख-शांति लाता है। यह लक्ष्मी माता का आशीर्वाद माना जाता है।

2. दान-पुण्य करना

अक्षय तृतीया पर दान करने का विशेष महत्व होता है। लोग इस दिन अन्न, वस्त्र, जल, छाते, जूते, पंखे और गायों को चारा आदि दान करते हैं। गर्मी के मौसम को देखते हुए यह दान जरूरतमंदों के लिए राहतकारी होता है।

3. व्रत और पूजा

इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु एवं लक्ष्मी माता की पूजा करने की परंपरा है। लोग घरों में कलश स्थापना करते हैं, श्री विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करते हैं और तुलसी को जल अर्पित करते हैं।

4. शुभ कार्यों की शुरुआत

इस दिन बिना किसी पंचांग या मुहूर्त के भी विवाह, गृह प्रवेश, व्यवसाय की शुरुआत, नया वाहन या संपत्ति खरीदना जैसे कार्य किए जा सकते हैं। इसे अबूझ मुहूर्त कहा जाता है, यानी किसी भी शुभ कार्य के लिए यह दिन सर्वोत्तम होता है।

ग्रामीण भारत में अक्षय तृतीया

ग्रामीण क्षेत्रों में अक्षय तृतीया का एक विशेष सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व है। कई जगहों पर इस दिन कन्याओं का सामूहिक विवाह कराया जाता है। इस दिन हल छूने की परंपरा भी होती है, जिससे किसान नए कृषि कार्य की शुरुआत करते हैं।

अक्षय तृतीया का आध्यात्मिक संदेश

अक्षय तृतीया हमें यह सिखाती है कि:

  • सच्चे मन से किया गया दान और पूजा कभी व्यर्थ नहीं जाता।

  • सकारात्मक सोच और शुभ कार्य हमें हमेशा फल देते हैं।

  • हर छोटे-बड़े कार्य में श्रद्धा और विश्वास जरूरी होता है।

यह पर्व केवल एक दिन नहीं, बल्कि हमें जीवन में अच्छाई, सेवा, और उदारता की भावना बनाए रखने की प्रेरणा देता है।

निष्कर्ष

अक्षय तृतीया एक ऐसा पर्व है जो हमें जीवन में आध्यात्मिक उन्नति, सामाजिक सेवा, और पारिवारिक सुख-शांति की ओर प्रेरित करता है। इस दिन छोटे-छोटे अच्छे काम भी भविष्य में बड़े फल दे सकते हैं। अगर हम इस दिन को सच्चे मन से मनाएं और दूसरों के जीवन में थोड़ा भी योगदान दें, तो यही अक्षय तृतीया का सबसे बड़ा अर्थ होगा।

📌 लेखक: KPR News डेस्क
📅 प्रकाशित: 30 अप्रैल 2025

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