भूमिका :
21वीं सदी में विश्व राजनीति तेजी से बदल रही है। वैश्विक शक्तियों के समीकरण, कूटनीतिक संबंध, आर्थिक प्रतिस्पर्धा और सुरक्षा नीतियों के संदर्भ में भारत की भूमिका अब पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है।
भारत, जो कभी एक विकासशील राष्ट्र के रूप में जाना जाता था, आज एक उभरती हुई महाशक्ति के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है।
यह परिवर्तन केवल आर्थिक शक्ति या जनसंख्या के कारण नहीं है, बल्कि भारत की विदेश नीति, वैश्विक मंचों पर नेतृत्व क्षमता, और लोकतांत्रिक मूल्यों की वजह से है।
इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि किस प्रकार भारत विश्व राजनीति में एक निर्णायक भूमिका निभा रहा है और किस तरह बदलते वैश्विक समीकरणों में उसका प्रभाव बढ़ रहा है।
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भारत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और वर्तमान स्थिति :
स्वतंत्रता के बाद भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की अगुवाई की। शीत युद्ध काल में जब दुनिया अमेरिका और सोवियत संघ के दो खेमों में बंटी थी, भारत ने एक संतुलित और स्वतंत्र विदेश नीति अपनाई।
वर्तमान समय में भारत ने गुटनिरपेक्षता से आगे बढ़ते हुए “मल्टी-अलाइनमेंट” की नीति अपनाई है। इसका अर्थ है कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर कई देशों से रणनीतिक साझेदारी करता है, चाहे वे एक-दूसरे के विरोधी ही क्यों न हों।
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वैश्विक मंचों पर भारत की बढ़ती उपस्थिति
(क) संयुक्त राष्ट्र में भूमिका
भारत संयुक्त राष्ट्र का एक संस्थापक सदस्य रहा है और कई दशकों से सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता की मांग कर रहा है। भारत की शांतिपूर्ण छवि, सैन्य योगदान (UN Peacekeeping Missions), और जनसंख्या, इस मांग को मजबूत बनाते हैं।
(ख) जी-20 और ब्रिक्स
भारत ने 2023 में सफलतापूर्वक जी-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी की। यह वैश्विक आर्थिक मामलों में भारत की गंभीर भागीदारी को दर्शाता है। ब्रिक्स (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) जैसे समूहों में भारत की भूमिका भी अब निर्णायक होती जा रही है।
(ग) इंडो-पैसिफिक रणनीति में भागीदारी
अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ मिलकर भारत क्वाड (QUAD) का हिस्सा है, जो इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने की रणनीति का हिस्सा है।
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चीन और भारत: प्रतिस्पर्धा और सामंजस्य
चीन और भारत दोनों एशिया की बड़ी ताकतें हैं और आर्थिक व सैन्य दृष्टि से तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। हालांकि, सीमाई विवाद और भू-राजनीतिक तनाव दोनों के संबंधों में अवरोध पैदा करते हैं।
डोकलाम (2017) और गलवान (2020) जैसी घटनाएं भारत की सुरक्षा नीति को कठोर बनाती हैं। भारत ने एक ओर चीन से आर्थिक निर्भरता घटाने की पहल की है तो दूसरी ओर ASEAN देशों, अमेरिका, यूरोप के साथ अपने व्यापारिक संबंध मजबूत किए हैं।
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रूस-यूक्रेन युद्ध और भारत की तटस्थता
रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत ने जिस प्रकार संतुलित नीति अपनाई, वह विश्व राजनीति में भारत की स्वतंत्र सोच को दर्शाता है। भारत ने रूस से अपने संबंध बनाए रखे और साथ ही वैश्विक मंचों पर शांति की बात भी की। इससे भारत को पश्चिमी देशों और रूस दोनों से संवाद बनाए रखने की क्षमता मिली है।
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अफगानिस्तान संकट और दक्षिण एशिया में भारत की भूमिका
तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद दक्षिण एशिया में भारत की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो गई है। भारत ने अफगान जनता की सहायता हेतु मानवीय सहायता भेजी, लेकिन तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी। यह एक विवेकपूर्ण और संतुलित दृष्टिकोण को दर्शाता है।
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भारत-अमेरिका संबंध: रणनीतिक साझेदारी की ओर
भारत और अमेरिका के संबंध अब केवल रक्षा क्षेत्र तक सीमित नहीं हैं, बल्कि व्यापार, तकनीक, शिक्षा और जलवायु जैसे कई क्षेत्रों में सहयोग बढ़ा है।
iCET (Initiative on Critical and Emerging Technologies) जैसे कार्यक्रमों के जरिए दोनों देश एक-दूसरे को तकनीकी शक्ति बनने में सहयोग कर रहे हैं।
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वैश्विक दक्षिण का नेतृत्वकर्ता
भारत स्वयं को “वैश्विक दक्षिण” (Global South) की आवाज के रूप में प्रस्तुत करता है — वे देश जो विकासशील हैं और जिनकी वैश्विक मंचों पर आवाज कम सुनी जाती है। भारत ने जलवायु परिवर्तन, टीकाकरण (कोविड-19 वैक्सीन मैत्री) और खाद्य सुरक्षा जैसे मुद्दों पर इन देशों का प्रतिनिधित्व किया है।
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जलवायु परिवर्तन और भारत की वैश्विक प्रतिबद्धता
भारत ने पेरिस समझौते और COP सम्मेलनों में सक्रिय भागीदारी की है। भारत का “LiFE (Lifestyle for Environment)” मिशन और 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता को 500 GW तक पहुंचाने का लक्ष्य वैश्विक पर्यावरण नेतृत्व को दर्शाता है।
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डिजिटल डिप्लोमेसी और सॉफ्ट पावर
(क) योग, बॉलीवुड और भारत की सांस्कृतिक छवि
भारत की सांस्कृतिक विरासत, योग और सिनेमा ने देश की सॉफ्ट पावर को बढ़ाया है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस (21 जून) की पहल को 170 से अधिक देशों का समर्थन मिला, यह भारत की सांस्कृतिक ताकत का प्रमाण है।
(ख) डिजिटल इंडिया और ग्लोबल टेक लीडर
भारत की IT सेवा, स्टार्टअप पारिस्थितिकी, और डिजिटल पेमेंट सिस्टम जैसे UPI, अब दुनिया भर में अपनाए जा रहे हैं। इससे भारत की एक टेक्नोलॉजी-लीडर छवि बन रही है।
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चुनौतियाँ और भविष्य की दिशा
(1) सीमाई विवाद और सुरक्षा खतरे
चीन और पाकिस्तान के साथ सीमा विवाद अब भी बड़ी चुनौती हैं। भारत को अपनी रक्षा तैयारियों को और मजबूत करना होगा।
(2) भू-राजनीतिक दबाव
भारत को अमेरिका और रूस जैसे विपरीत ध्रुवों के बीच संतुलन बनाए रखना कठिन होता जा रहा है। वैश्विक संकटों के समय भारत की “तटस्थता” नीति की आलोचना भी होती है।
(3) घरेलू नीतियों का वैश्विक प्रभाव
कभी-कभी भारत की आंतरिक नीतियों (जैसे CAA/NRC) की वजह से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आलोचना भी होती है। भारत को अपनी लोकतांत्रिक छवि को बनाए रखने की ज़रूरत है।
निष्कर्ष :
विश्व राजनीति में भारत की भूमिका अब केवल “देखने वाले” की नहीं रही, बल्कि “निर्णय लेने वाले” की बन गई है। बदलते वैश्विक समीकरणों में भारत ने अपनी विदेश नीति को संतुलित, बहु-आयामी और व्यावहारिक बनाया है।
भारत ने यह सिद्ध कर दिया है कि वह किसी एक गुट या दबाव में नहीं, बल्कि अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर वैश्विक नीतियों को गढ़ने में सक्षम है। आने वाले वर्षों में भारत की यह भूमिका और भी निर्णायक होगी, बशर्ते वह अपनी आंतरिक मजबूती, तकनीकी विकास, और वैश्विक नैतिक नेतृत्व बनाए रखे।
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