लोकसभा में आज पेश होगा ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ बिल, विपक्ष के विरोध पर मोदी सरकार ने की ये तैयारी

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‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ बिल को लेकर आज लोकसभा में हलचल तेज होने वाली है। यह बिल केंद्र सरकार द्वारा एक बड़ा कदम माना जा रहा है, जिसका उद्देश्य पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराना है। हालांकि, विपक्षी दल इस प्रस्ताव का पुरे जोर से विरोध कर रहे हैं। मोदी सरकार ने इस विरोध से निपटने के लिए पूरी तैयारी कर ली है।

क्या है ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’?

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का मतलब है कि पूरे देश में एक साथ लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव कराए जाएं। वर्तमान में भारत में चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं, जिससे प्रशासनिक बोझ, खर्च और संसाधनों पर दबाव बढ़ता है। यह बिल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वपूर्ण सुधार एजेंडा का हिस्सा है।

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के मुख्य उद्देश्य:

  1. चुनावी खर्च में कमी: अलग-अलग चुनावों के खर्चे को काम करना |
  2. शासन में स्थिरता: बार-बार चुनावों से सरकार की कार्यशैली मे अस्थिरता आती है |
  3. प्रशासनिक बोझ घटाना: चुनाव प्रक्रिया में लगे संसाधनों को अन्य विकास कार्यों में लगाया जा सके।

विपक्ष का विरोध क्यों?

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ बिल को लेकर विपक्षी दलों ने कई आपत्तियां दर्ज कराई हैं। उनके मुख्य तर्क इस प्रकार हैं:

  1. संविधान का उल्लंघन:
    • विपक्ष का मानना है कि इस बिल से संविधान में संशोधन करना पड़ेगा, जोकि राज्यों के अधिकारों का हनन हो सकता है।
  2. फेडरल स्ट्रक्चर पर प्रभाव:
    • भारत का संविधान राज्यों को स्वायत्तता प्रदान करता है। एक साथ चुनाव कराने से राज्यों की स्वायत्त्ता पर प्रभाव पड़ सकता है।
  3. वास्तविकता से परे:
    • कई विपक्षी नेताओं का कहना है कि यह विचार व्यवहारिक नहीं है, क्योंकि सभी राज्यों के कार्यकाल एक साथ पूर्ण नहीं होते।

विपक्षी दलों के बड़े नेता क्या कह रहे हैं?

  • कांग्रेस: “यह लोकतंत्र के लिए खतरा है और संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है।”
  • टीएमसी: “यह राज्यों की आवाज को दबाने का प्रयास है।”
  • डीएमके: “केंद्र सरकार को राज्यों की संवैधानिक स्थिति का सम्मान करना चाहिए।”

मोदी सरकार की तैयारी

विपक्ष के विरोध को देखते हुए मोदी सरकार ने इस बिल को पास कराने के लिए व्यापक रणनीतियां तैयार की है। सरकार का तर्क है कि यह बिल देशहित में है और इससे कई फायदे होंगे:

  1. न्यायमूर्ति समिति की रिपोर्ट:
    • मोदी सरकार ने पहले ही पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था, जिसने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के फायदों पर रिपोर्ट पेश की है।
  2. जनता का समर्थन:
    • सरकार का दावा है कि जनता इस प्रस्ताव का समर्थन कर रही है क्योंकि इससे करदाताओं के पैसे की बचत होगी।
  3. संविधान संशोधन:
    • सरकार विपक्ष को यह समझाने की कोशिश करेगी कि संविधान में संशोधन करके इसे लागू करना संभव है।

वन नेशन, वन इलेक्शन’ से क्या फायदा होगा?

  1. खर्च में भारी कमी: चुनाव कराने में करोड़ों रुपये खर्च हो जाते हैं। एक साथ चुनाव करने से यह खर्च काफी कम हो जाएगा।
  2. विकास कार्यों में तेजी: लगातार चुनावों के कारण आचार संहिता लग जाती है, जिसके कारण विकास कार्य रुक जाते हैं।
  3. प्रशासनिक सुविधाएं: सुरक्षा बलों और चुनाव आयोग की व्यवस्थाओं पर दबाव कम होगा।

क्या हैं चुनौतियां?

  1. संविधान संशोधन:
    • संविधान के अनुच्छेद 83 और 172 के तहत लोकसभा और विधानसभाओं के कार्यकाल का जिक्र है। इसे एक साथ लाने के लिए संशोधन की जरूरत पड़ेगी।
  2. सभी राज्यों की सहमति:
    • राज्यों की सहमति के बिना इस बिल को लागू करना मुश्किल होगा।
  3. लॉजिस्टिक समस्याएं:
    • इतने बड़े स्तर पर चुनावों को आयोजित करना एक बड़ी चुनौती है।

निष्कर्ष

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ बिल आज लोकसभा में पेश होने के साथ ही एक ऐतिहासिक बहस की शुरुआत करेगा। मोदी सरकार इसे देश के विकास और चुनावी खर्च में कमी के लिए जरूरी बता रही है, वहीं विपक्ष इसे लोकतंत्र और राज्यों की स्वायत्ता पर हमला मान रहा है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह बिल पास हो पाएगा या विपक्ष के विरोध के चलते यह अटक जाएगा।

देशभर के लोग इस बिल को लेकर उत्सुक हैं और संसद की कार्यवाही पर उनकी नजरें टिकी हुई हैं।

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