एक राष्ट्र, एक चुनाव (One Nation One Election) का विचार भारत में चुनावी सुधारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसका उद्देश्य लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ आयोजित करना है। यह प्रस्ताव चुनाव प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिए है, जिसमें केंद्र और राज्य स्तर के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे। दिसंबर 2024 में मोदी सरकार द्वारा “एक राष्ट्र, एक चुनाव” विधेयक को मंजूरी मिलने के बाद, यह विषय फिर से चर्चा में है। इस ब्लॉग में, हम इस प्रस्ताव का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य, लाभ, चुनौतियों और इसके भविष्य के प्रभावों पर चर्चा करेंगे।
One Nation One Election (ONOE) क्या है?
एक राष्ट्र, एक चुनाव का विचार यह है कि देश में लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं। वर्तमान में, भारत में चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं, क्योंकि विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल अलग-अलग समय पर पूरा होता है। जबकि लोकसभा चुनाव हर पांच साल में एक बार होते हैं, विधानसभा चुनाव राज्यों में अलग-अलग समय पर होते हैं।
यह विचार नया नहीं है। 1951 से 1967 तक भारत में लोकसभा और राज्य चुनाव एक साथ होते थे, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता और समय के साथ यह परंपरा टूट गई, और चुनाव चक्र असमान हो गए।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और ONOE के लिए मोदी सरकार की पहल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2019 से एक राष्ट्र, एक चुनाव के समर्थक रहे हैं। 73वें स्वतंत्रता दिवस पर उन्होंने इस विषय पर बात की और देश को चुनावी प्रक्रिया को एकीकृत करने का सुझाव दिया। 2024 में स्वतंत्रता दिवस पर भी उन्होंने इस विषय पर चर्चा की और इसे राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण कदम बताया।
2018 में विधि आयोग की एक रिपोर्ट ने इस विचार को और बल दिया। आयोग ने बताया कि साथ-साथ चुनाव कराने से आर्थिक लाभ होंगे और प्रशासनिक कार्यों में सुधार होगा। 2023 में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक उच्च-स्तरीय समिति ने अपनी सिफारिशें प्रस्तुत कीं, जिन्हें सितंबर 2024 में केंद्रीय कैबिनेट द्वारा मंजूरी दी गई।
One Nation One Election (ONOE) के आर्थिक और प्रशासनिक कारण
एक राष्ट्र, एक चुनाव का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे चुनावी प्रक्रिया पर होने वाले खर्च में कमी आएगी। विधि आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, 2014 में लोकसभा चुनाव और उसके बाद अलग-अलग राज्यों के विधानसभा चुनावों का खर्च लगभग समान था। एक साथ चुनाव होने से यह खर्च आधा हो सकता है, क्योंकि संसाधनों का उपयोग अधिक कुशलता से किया जा सकेगा।
इसके अलावा, बार-बार चुनाव होने से सरकारी कार्यों में रुकावट आती है। चुनावी मोड में रहते हुए, सरकारें दीर्घकालिक नीतियों के बजाय अल्पकालिक चुनावी लाभों पर ध्यान केंद्रित करती हैं। एक राष्ट्र, एक चुनाव से सरकारों को अधिक स्थिरता मिलेगी और उन्हें शासन पर ध्यान केंद्रित करने का समय मिलेगा।
कोविंद समिति की रिपोर्ट और मुख्य सिफारिशें
कोविंद समिति ने एक राष्ट्र, एक चुनाव को दो चरणों में लागू करने का प्रस्ताव दिया:
- पहला चरण: लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएंगे।
- दूसरा चरण: आम चुनावों के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव (पंचायत और नगर पालिका) कराए जाएंगे।
साथ ही, समिति ने सभी चुनावों के लिए एक समान मतदाता सूची तैयार करने की भी सिफारिश की, जिससे चुनाव प्रक्रिया सरल हो सके। इसके लिए देश भर में व्यापक चर्चा और एक कार्यान्वयन समूह के गठन की भी आवश्यकता बताई गई है।
One Nation One Election (ONOE) के लाभ
- आर्थिक बचत: सबसे बड़ा लाभ चुनावों पर होने वाले खर्च में कमी का है। साथ-साथ चुनाव कराए जाने से सरकार और चुनाव आयोग दोनों का खर्च कम होगा, क्योंकि संसाधनों का उपयोग अधिक कुशलतापूर्वक हो सकेगा।
- चुनावी थकान में कमी: बार-बार चुनाव होने से मतदाताओं, अधिकारियों और सुरक्षा बलों पर दबाव बढ़ता है। एक साथ चुनाव होने से यह थकान कम हो जाएगी और जनता को एक व्यवस्थित चुनाव प्रक्रिया मिलेगी।
- लगातार शासन: बार-बार चुनाव होने से नीतिगत फैसले प्रभावित होते हैं। एक साथ चुनाव होने से सरकारों को एक स्थिर शासन देने का मौका मिलेगा, जिससे दीर्घकालिक योजनाओं को लागू करने में मदद मिलेगी।
- राष्ट्रीय एकीकरण को मजबूती: एक राष्ट्र, एक चुनाव का उद्देश्य पूरे देश में एक साथ चुनाव कराना है, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को मजबूत किया जा सकेगा और जनता के बीच एकता का भाव पैदा होगा।
एक राष्ट्र, एक चुनाव की चुनौतियां
हालांकि इसके कई लाभ हैं, एक राष्ट्र, एक चुनाव को लागू करना आसान नहीं है। इसके सामने कई चुनौतियां हैं:
- संविधानिक संशोधन: इसे लागू करने के लिए संविधान में कई संशोधन करने होंगे। उदाहरण के लिए, संविधान के अनुच्छेद 83, 85, 172, 174 और 356 में संशोधन की आवश्यकता होगी, ताकि विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल एकसाथ समाप्त हो सके।
- राजनीतिक सहमति: राजनीतिक सहमति प्राप्त करना एक बड़ी चुनौती है। कई क्षेत्रीय दल इस विचार का विरोध कर सकते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि राष्ट्रीय मुद्दे क्षेत्रीय मुद्दों पर हावी हो जाएंगे, जिससे क्षेत्रीय दलों को नुकसान हो सकता है।
- व्यावहारिक कठिनाइयां: इतने बड़े पैमाने पर चुनाव कराना एक बड़ा प्रशासनिक और लॉजिस्टिक चुनौती है। पूरे देश में एक साथ चुनाव कराना बड़ी संख्या में संसाधनों, सुरक्षा और चुनाव अधिकारियों की मांग करेगा।
आगे की राह
मोदी सरकार द्वारा One Nation One Election विधेयक को मंजूरी दिए जाने के बाद, भारत इस चुनावी सुधार के करीब पहुंच गया है। हालांकि, इसे लागू करने के लिए संवैधानिक, राजनीतिक और प्रशासनिक चुनौतियों से निपटना होगा। इस विचार को व्यापक समर्थन मिला है, और आने वाले महीनों में संसद में इस पर गहन चर्चा होगी।
निष्कर्ष
एक राष्ट्र, एक चुनाव का प्रस्ताव भारत के लिए एक क्रांतिकारी बदलाव हो सकता है, जो चुनावी खर्च में कमी, प्रशासनिक स्थिरता और सुचारू शासन प्रदान कर सकता है। लेकिन इसे लागू करने की चुनौतियों को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि भारत इस एकीकृत चुनावी प्रणाली की दिशा में कैसे आगे बढ़ता है और कैसे यह देश के लोकतांत्रिक ढांचे को प्रभावित करता है।