भारत का मानसून सिर्फ़ मौसम की घटना नहीं है, बल्कि यह हमारे सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन की धड़कन है। हर साल जून से सितंबर तक चलने वाला दक्षिण-पश्चिम मानसून देश की कृषि व्यवस्था, जल संसाधन, बिजली उत्पादन और आम जनजीवन को गहराई से प्रभावित करता है।
वर्ष 2025 में मानसून का रुख पहले से अलग माना जा रहा है। बदलती जलवायु, ग्लोबल वार्मिंग और समुद्री परिस्थितियों के कारण मौसम वैज्ञानिक इस बार कुछ नए संकेत दे रहे हैं।
आइए विस्तार से समझते हैं कि इस साल के मानसून का स्वरूप कैसा रहने वाला है और यह किसानों व आम जनता पर किस तरह असर डालेगा।
1. 2025 में मानसून का पूर्वानुमान
भारतीय मौसम विभाग (IMD) और निजी मौसम एजेंसियों के मुताबिक, 2025 का मानसून सामान्य से थोड़ा असामान्य रहने की संभावना है।
उत्तर भारत में मानसून देर से सक्रिय होगा, लेकिन अगस्त-सितंबर में ज़्यादा वर्षा हो सकती है।
मध्य भारत यानी मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात और महाराष्ट्र के हिस्सों में वर्षा सामान्य रहेगी।
दक्षिण भारत में शुरुआती बारिश अच्छी रहेगी, लेकिन बाद के महीनों में कमी आ सकती है।
पूर्वोत्तर भारत में हमेशा की तरह भारी बारिश और बाढ़ की स्थिति बन सकती है।
कुल मिलाकर, देशभर में औसत वर्षा सामान्य से 96-104% तक रहने का अनुमान है।
2. किसानों पर असर
(क) बुवाई पर असर
भारत की 55% कृषि मानसून पर निर्भर है।
समय पर बारिश होने पर खरीफ की फसलें जैसे धान, मक्का, सोयाबीन और कपास अच्छी तरह पनपेंगी।
अगर बारिश देर से आती है, तो बुवाई प्रभावित होगी और किसानों को बीज व खाद पर दोबारा खर्च करना पड़ेगा।
(ख) पैदावार और आय
पर्याप्त और संतुलित बारिश से फसल उत्पादन बढ़ेगा और किसानों की आमदनी में सुधार होगा।
अधिक बारिश या बाढ़ की स्थिति में धान जैसी फसलें डूब सकती हैं और नुकसान झेलना पड़ सकता है।
कम बारिश की स्थिति में बाजरा, ज्वार और दालों जैसी कम पानी वाली फसलें किसानों की पहली पसंद बन सकती हैं।
(ग) सिंचाई पर निर्भरता
अगर मानसून कमजोर रहा तो किसान नलकूप और ट्यूबवेल पर ज़्यादा निर्भर होंगे, जिससे डीज़ल और बिजली का खर्च बढ़ेगा।
3. आम जनता पर असर
(क) महंगाई और खाद्य वस्तुएँ
मानसून सीधा असर खाद्य वस्तुओं पर डालता है।
अच्छी बारिश से सब्ज़ियाँ, अनाज और दालों की कीमतें स्थिर रहेंगी।
बारिश कम होने पर महंगाई बढ़ सकती है और आम जनता की जेब ढीली होगी।
(ख) जल संकट और पीने का पानी
कम बारिश से शहरों और गाँवों में पीने के पानी की कमी हो सकती है।
अच्छे मानसून से बाँध और नहरें भर जाएँगी, जिससे अगले साल के लिए पानी का संग्रह आसान होगा।
(ग) स्वास्थ्य और बीमारियाँ
बरसात का मौसम अपने साथ कई बीमारियाँ लाता है।
मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया और पानी से फैलने वाली बीमारियाँ बढ़ सकती हैं।
ग्रामीण इलाक़ों में गंदे पानी से पेट की बीमारियाँ भी तेज़ी से फैलती हैं।
4. बिजली और ऊर्जा क्षेत्र पर असर
बारिश से बाँधों में पानी भरता है, जिससे हाइड्रो पावर प्लांट को फायदा मिलता है।
अच्छी बारिश से कोयले पर निर्भरता कम होती है, लेकिन ज़्यादा बारिश से खदानों में पानी भरने की समस्या भी आती है।
शहरों में मानसून के दौरान बिजली कटौती आम हो जाती है।
5. इंफ्रास्ट्रक्चर और परिवहन
भारी बारिश से सड़कों पर जलभराव, ट्रैफिक जाम और हादसों की स्थिति बनती है।
रेलवे और हवाई सेवाएँ प्रभावित होती हैं।
गाँवों में कच्ची सड़कें बह जाती हैं और लोगों की आवाजाही मुश्किल हो जाती है।
6. पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
2025 का मानसून हमें यह भी याद दिला रहा है कि जलवायु परिवर्तन का असर अब हर साल साफ दिखने लगा है।
कभी सूखा तो कभी बाढ़ की स्थिति बनती है।
समुद्र के बढ़ते तापमान (El Niño और La Niña) का सीधा असर मानसून पर पड़ता है।
वैज्ञानिक मानते हैं कि अगर कार्बन उत्सर्जन इसी तरह बढ़ता रहा तो आने वाले वर्षों में मानसून और भी अनिश्चित होता जाएगा।
7. सरकार और नीतिगत तैयारी
सरकार ने किसानों के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जैसी योजनाएँ बनाई हैं, ताकि बाढ़ या सूखे की स्थिति में उन्हें मुआवज़ा मिल सके।
कई राज्यों में जल संरक्षण अभियान चलाए जा रहे हैं।
शहरी इलाक़ों में ड्रेनेज सिस्टम को मज़बूत बनाने की दिशा में काम हो रहा है।
निष्कर्ष :
2025 का मानसून न केवल किसानों के लिए बल्कि हर भारतीय के जीवन में अहम भूमिका निभाने वाला है।
किसानों की आय, आम जनता की थाली, शहरों का पानी, बिजली और स्वास्थ्य—सब कुछ बारिश पर निर्भर करता है।
अगर मानसून सामान्य रहा तो अर्थव्यवस्था को बड़ी राहत मिलेगी, लेकिन गड़बड़ होने पर महंगाई और संकट दोनों बढ़ सकते हैं।
इसलिए ज़रूरी है कि सरकार और समाज मिलकर जल संरक्षण, बेहतर कृषि पद्धति और पर्यावरण संतुलन पर ध्यान दें। तभी आने वाले सालों में मानसून का असली सुख मिल पाएगा।