गुरु घासीदास: सतनामी पंथ के संस्थापक और उनकी विरासत

गुरु घासीदास जयंती

वनों, नदियों और पहाड़ियों से घिरा छत्तीसगढ़ न केवल प्राकृतिक सुंदरता के लिए बल्कि अपनी आध्यात्मिक धरोहर के लिए भी प्रसिद्ध है। ऐसी पवित्र भूमि पर, 18 दिसम्बर 1756 को गिरौदपुरी नामक गाँव में एक बालक का जन्म हुआ, जिसने आगे चलकर छत्तीसगढ़ के समाज और धर्म को नई दिशा दी। वह बालक आगे चलकर गुरु घासीदास के नाम से प्रसिद्ध हुआ, जिन्होंने सतनामी पंथ की स्थापना की और अपने उपदेशों से लाखों लोगों को मार्गदर्शन दिया। उनका जीवन और उनके विचार आज भी समाज के वंचित वर्गों को प्रेरित करते हैं।

गुरु घासीदास: प्रारंभिक जीवन और आध्यात्मिक जागरण

गुरु घासीदास का जन्म एक समृद्ध कृषक परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता अमरौतिन बाई और महंगूदास ने उन्हें प्यार से ‘घसिया’ नाम दिया। बाल्यकाल से ही वे अद्भुत प्रतिभा के धनी थे और प्रायः सोनाखान की पहाड़ियों में ध्यान लगाकर घण्टों बैठे रहते थे। उनके माता-पिता इस बात से चिंतित थे कि उनका इकलौता पुत्र साधु न बन जाए, इसलिए उन्होंने उनका विवाह सफूरा देवी से कर दिया, जो सिरपुर गाँव के अंजोरी मण्डल की पुत्री थीं। इस दंपत्ति के चार संताने हुईं—तीन पुत्र अमरदास, बालकदास, और आगरदास तथा एक पुत्री सुभद्रा।

सामाजिक समस्याएँ और जागरूकता

गुरु घासीदास का जीवन ऐसे समय में था जब अंग्रेजों का शासन भारत पर हावी हो रहा था। इसके साथ ही, स्थानीय जमींदार गरीब किसानों पर अत्याचार कर रहे थे। सिंचाई के साधनों की कमी से अकाल और सूखा प्रायः पड़ते रहते थे, जिससे किसान और मजदूर भूख से मर रहे थे। साथ ही, समाज में अशिक्षा, अंधविश्वास, जादू-टोना, पशुबलि, और छुआछूत जैसी बुराइयाँ व्याप्त थीं।

सतनाम ज्ञान की प्राप्ति

इन सामाजिक समस्याओं से जूझते हुए, गुरु घासीदास ने जंगलों में जाकर ध्यान और तप किया। छह महीने की कठोर साधना के बाद, 1820 में उन्हें सतनाम का ज्ञान प्राप्त हुआ। इसके बाद उन्होंने गाँव-गाँव जाकर इस ज्ञान का प्रचार करना शुरू किया। उनका पहला उपदेश उनके अपने गाँव में ही हुआ।

सतनाम का अर्थ है ‘सच्चा नाम’, और उनके अनुसार, यही ईश्वर का वास्तविक स्वरूप है। उन्होंने सिखाया कि सतनाम ही एकमात्र सत्य है और सभी मनुष्यों को समान समझा जाना चाहिए। उनके अनुयायी उन्हें गुरु घासीदास कहने लगे और उनके उपदेशों पर चलने लगे।

गुरु घासीदास के प्रमुख उपदेश

गुरु घासीदास के उपदेश समाज में फैली बुराइयों के खिलाफ थे। उनके कुछ प्रमुख संदेश थे:

  • समानता का संदेश: उन्होंने जातिगत भेदभाव का विरोध किया और कहा कि सभी मनुष्य ईश्वर की दृष्टि में समान हैं।
  • अंधविश्वासों का विरोध: उन्होंने पशुबलि, मूर्तिपूजा, और कर्मकांड का विरोध किया।
  • महिलाओं का सम्मान: उन्होंने कहा कि पराई स्त्री को माँ के समान समझा जाना चाहिए।
  • स्वावलंबन: गुरु घासीदास ने मेहनत से अपनी जीविका कमाने और दूसरों का शोषण न करने का उपदेश दिया।
  • पशुओं के प्रति दया: उन्होंने पशुओं के साथ दयालुता और प्रेम से व्यवहार करने का उपदेश दिया और उन्हें दोपहर के समय काम न करवाने की सलाह दी।

चमत्कार और उनके अनुयायी

गुरु घासीदास के जीवन में अनेक चमत्कारों की कथाएँ जुड़ी हुई हैं, जिनसे उनके अनुयायियों की संख्या में वृद्धि हुई। लोग मानते थे कि खेत में काम करते समय वे समाधि में लीन हो जाते थे, फिर भी उनका खेत जुत जाता था। इसके अलावा, उन्होंने साँप के काटे हुए लोगों को जीवित करना, बिना आग और पानी के भोजन तैयार करना जैसे चमत्कार भी किए।

उनकी शिक्षाओं से वंचित और गरीब वर्ग के लोगों को धर्म में सरल और सस्ता मार्ग मिला, जिससे वे बड़े पैमाने पर सतनामी पंथ से जुड़ने लगे। इससे एक और बड़ा लाभ यह हुआ कि जो गरीब वर्ग धर्मांतरण कर ईसाई बनने की ओर बढ़ रहा था, उसे हिन्दू धर्म में ही सम्मान के साथ जीने का मार्ग मिल गया।

गुरु घासीदास की अमर विरासत

गुरु घासीदास ने अपने उपदेशों के माध्यम से सतनामी पंथ को मजबूत बनाया, जो आज भी लाखों लोगों के जीवन का हिस्सा है। उन्होंने समाज को स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाया, जिससे लोगों को आध्यात्मिक जागरूकता और समाज में अपनी पहचान मिली।

यह भी कहा जाता है कि महात्मा गांधी द्वारा लोकप्रिय तीन बंदरों की मूर्ति—‘बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो’—का विचार गुरु घासीदास के ही उपदेशों से प्रेरित था।

सतनामी पंथ के अनुयायी आज भी मानते हैं कि ब्रह्मलीन होने के बाद भी गुरु घासीदास उनके बीच आकर उन्हें सत्य और धर्म का मार्ग दिखाते रहते हैं।

गुरु घासीदास जयंती

निष्कर्ष

गुरु घासीदास की शिक्षा और उनका सतनामी पंथ छत्तीसगढ़ में आज भी जीवित है। उन्होंने जो समता, करुणा और सत्य की शिक्षा दी, वह समाज को सदियों तक मार्गदर्शन देती रहेगी। उनका योगदान न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक सुधारों में भी महत्वपूर्ण है, और उनका जीवन प्रेरणादायक बना रहेगा।

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